एक वक़्त था जब चवन्नी सिर्फ एक सिक्का नहीं हुवा करती थी बल्कि चवन्नी हमारी ज़िन्दगी का एक अहम् हिस्सा हुवा करती थी |मंदिर में पूजा के बाद पंडित जी को दक्षिणा में सवा रुपया दिया जाता था|
चवन्नी की कीमत हमारे लिए सिर्फ एक सिक्के भर की नहीं थी बल्कि चवन्नी तो हरे दिलो दिमाग में बस्ती थी मां अपने बच्चो को चवन्नी की ढलवा ताबीज बना के पहनाती थी ,बुरी नज़र और बुरे सपनो से बचने के लिए |
शाम को जब पिता जी दफ्तर से घर आते थे और बच्चे उनसे टॉफी खरीदने के लिए पईसा मांगते थे तो उनके हाथो में खनकती चवन्नी होती थी |
एक वक़्त था जब गर्मी के दिनों में भरी दोपहरी में बरफ वाला अपने साईकिल में पो पो बजता हुवा बर्फ के गोले बेचने आता था तब हमरे हाथो में चवन्नी हुवा करती थी जिससे हम बर्फ के गोले खरीद के खाते थे |
उन दिनों स्कूल के बाहर एक चवन्नी में एक प्लेट पकौड़े मिला करते थे|
चवन्नी नहीं होती तो किशोर कुमार ‘पांच रुपैया बारह आना ...’ नहीं गा पाते और ‘राजा दिल मांगे चवन्नी उछाल के’, भी लोग नहीं गुनगुना पाते|
रिजर्व बैंक का आदेश जारी हो चुका है। कल से यानि 30 जून से चवन्नी को चलन से बाहर कर दिया जायेगा | सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सभी बैंकों में चवन्नी और उससे छोटे सिक्कों को देकर बदले में बराबर मूल्य के रुपए लिए जा सकते हैं। इसके अलावा रिजर्व बैंक की सभी शाखाओं में भी यह सुविधा रहेगी।
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